बाईपोलर डिस्‍आर्डर के लक्षणों को नजरंदाज न करें

बाईपोलर डिस्‍आर्डर के लक्षणों को नजरंदाज न करें

के. संगीता

बाईपोलर डिस्‍आर्डर, जिसे पहले मेनि‍येक या मेजर डिप्रेशन कहा जाता था, एक ऐसा मानसिक विकार है जिससे व्‍यक्ति के मूड (मनोदशा), ऊर्जा व कार्यक्षमता के स्‍तरों और रोजमर्रा के काम करने की क्षमता में असामान्‍य रूप से उतार चढ़ाव आते हैं। इस विकार में रोगी को दो विशिष्‍ट, विपरीत मनोदशाओं यानी उन्‍माद (मेनिया या हाइपोमेनिया) और अवसाद (डिप्रेशन) का सामना करना पड़ता है।  इसी बदलती मनोदशा को मूड स्विंग के नाम से जाना जाता है। एक मनोदशा में रहने की अवधि को ऐपिसोड कहा जाता है जैसे मेनियक ऐपिसोड और डिप्रेसिव ऐपिसोड।

 

मेनिया और हाईपोमेनिया

मेनिया या हाईपोमेनिया होने पर व्‍यक्ति असामान्‍य रूप से अति आशावादी, उत्‍साही, ऊर्जावान अथवा चिड़चिड़ा हो जाता है। उन्‍माद के दौरे में रोगी को साईकोसिस (यर्थाथ के बजाय कल्‍पना को सच समझना, मतिभ्रम) भी हो सकता है जिसमें अस्‍पताल में भर्ती कराना जरूरी हो जाता है। गंभीर उन्‍माद के दौरे में होने वाले मतिभ्रम, कल्‍पनाशीलता व भय के कारण इसे गलती से स्किजोफ्रेनि‍या समझ लिया जाता है। मेनियेक और हाइपोमेनियेक दोनों ही एपिसोड में निम्‍न तीन या तीन से अधिक लक्षण होने चाहिए: अत्‍यधिक कार्य करना, ऊर्जा अथवा घबराहट, अत्‍यधिक उत्‍साही होना, अति आत्‍मविश्‍वास, नींद की कमी, मस्‍तिष्‍क में एक समय में हजारों बातें आना, असामान्‍य रूप से बातूनी होना, ध्‍यान एकाग्र न कर पाना और निर्णय लेने की क्षमता में कमी जैसे फिजूलखर्च करना, मूर्खतापूर्ण निवेश करना। 

मेजर डिप्रेसिव एपिसोड (गहन अवसाद)

दूसरी ओर मनोदशा बदलने पर अवसाद की स्‍थ‍िति आते ही रोगी को उदासीनता या नाउम्‍मीदी जैसा महसूस होता है और अधिकतर कार्यो में उसकी रूचि और खुशी समाप्‍त हो जाती है। उन्‍माद के ऐपिसोड से गुजरने के बाद रोगी को अनिवार्य रूप से गहरे अवसाद का सामना करना पड़ता है। इसमें नीचे दिए गए लक्षणों में से पांच अथवा अधिक लक्षण दिखाई देते हैं: अवसादपूर्ण मनोस्थिति जैसे उदास, खाली और नाउम्‍मीद अथवा रोने की भावना, हर तरह की गतिविधियों में रूचि अथवा आनंद का समाप्‍त हो जाना, बिना डाइटिंग के वजन गिरना या अचानक वजन का बढ़ना, अधिक भूख लगना या भूख का पूरी तरह खत्‍म हो जाना, बेचैनी अथवा सुस्‍त हो जाना, बिना कोई शारीरिक श्रम किए थकान होना, नींद का कम हो जाना या बहुत ज्‍यादा नींद आना, खुद को बेकार समझाने की भावना अथवा अकारण ग्‍लानि की भावना, सोचने या ध्‍यान देने की क्षमता में कमी आना, आत्‍महत्‍या की योजना बनाना या प्रयास करना।

मूड स्विंग के ये एपिसोड वर्ष में कभी कभार भी हो सकते हैं या कई बार भी हो सकते हैं। इस प्रकार के मूड स्विंग व्‍यक्ति की नींद, ऊर्जा, कार्यों, निर्णय लेने की क्षमता, व्‍यवहार और स्‍पष्‍ट रूप से सोचने समझने की क्षमता को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। दरअसल बाईपोलर डिस्‍आर्डर डॉक्‍टरों और अनुसंधानकर्ताओं के लिए अब भी एक रहस्‍य बना हुआ है। मनोदशाओं की गंभीरता और लक्षणों को देखते हुए इसके चार प्रकार बताए गए हैं।

बाईपोलर I डिस्‍आर्डर- इसमें रोगी कम से कम एक मेनियेक एपिसोड और अवसाद के कम से कम एक एपिसोड से प्रभावित होना चाहिए और इसमें उन्‍माद की स्थिति लगातार सात दिनों तक बनी रहे या उन्‍माद के लक्षण इतने गंभीर हो कि रोगी को अस्‍पताल में भर्ती कराना पड़े। इसके पहले या बाद में हाइपोमेनियक अथवा अवसाद की स्थिति रही हो। कुछ मामलों में उन्‍माद के ऐपिसोड में साइकोसिस यानि यर्थाथ से दूर होकर कल्‍पना में जीना या मतिभम्र हो सकता है।

बाईपोलर II डिस्‍आर्डर: इसके लिए यह जरूरी है कि एक वर्ष में कम से कम गहरे अवसाद का एक और कम से कम उन्‍माद का एक ऐपिसोड हो।

साईक्‍लोथाईमिक डिस्‍आर्डर: व्‍यक्ति को कम से कम दो वर्षों तक हाईपोमेनिया (मे‍निया के कम गंभीर लक्षण) के लक्षणों के कई ऐपिसोड और अवसाद (गहरे अवसाद से कम) के लक्षणों के कई एपिसोड का सामना करना पड़े।

अन्‍य प्रकार: इनमें ड्रग्‍स अथवा शराब के सेवन से या किसी मेडिकल स्थिति जैसे कुशिंग रोग, मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस अथवा स्‍ट्रोक द्वारा उभरे हुए बाईपोलर और संबंधित डिस्‍आर्डर।

वास्‍तव में बाईपोलर II डिस्‍आर्डर बाईपोलर I डिस्‍आर्डर का हल्‍का प्रकार नहीं है। दोनों का निदान अलग हैं। बाईपोलर I में होने वाला उन्‍माद का दौर गंभीर और खतरनाक हो सकता है, बाईपोलर II का रोगी बहुत लंबे समय तक अवसाद में रह सकता है जो बहुत अधिक नुकसानदेह हो सकता है। हालांकि बाईपोलर डिस्‍आर्डर किसी भी आयु में हो सकता है फिर भी यह किशोरवय अथवा 20 पार की शुरूआती आयु में होता है। यह महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकता है।  

कारण

इसका कोई एक निश्चित कारण नहीं होता। मस्तिष्‍क में होने वाले रासायनिक बदलावों को इसका प्रमुख कारण माना जाता है। आपके मस्तिष्‍क की संरचना या कार्यों में असमान्‍यता आपके लिए जोखिम को बढ़ा सकती है। आनुवांशिकता को भी इसका जिम्‍मेदार माना गया है। यदि आपके माता-पिता अथवा भाई-बहन में से कोई इस डिस्‍आर्डर से ग्रसित हैं तो आपके लिए जोखिम बढ़ जाता है। यह भी जरूरी नहीं है कि हमारे शरीर या मस्तिष्‍क में मौजूद कारण ही इसके लिए जिम्‍मेदार हों। बाहरी कारक भी इसके लिए उत्‍तरदायी हो सकते है जैसे अत्‍यधिक तनाव, भयावह अनुभव या कोई शारीरिक रोग से भी यह सक्रिय हो सकता है।

यह ज्ञात होने पर कि आपको बाईपोलर डिस्‍आर्डर है, जीवनशैली में कुछ परिवर्तन लाकर मेनिया या अवसाद का गंभीर दौरा पड़ने से बचा जा सकता है। साइकोथेरेपी से रोगी स्‍वयं ही चेतावनी के चिन्‍हों को पहचानना सीखता है, इसके अलावा वह स्‍वयं अपने बाईपोलर ऐपिसोड का पैटर्न और उसे उभारने वाली स्थितियों को पहचानना सीखता है। यदि आपको अवसाद या उन्‍माद की स्थिति उभरती दिखें तो तुरंत अपने डॉक्‍टर को सूचित करें। अपने परिवार के सदस्‍यों या दोस्‍तों को कहें कि वे भी ऐसे चेतावनी चिन्‍हों को ध्‍यान में रखें।

डग्‍स और शराब के सेवन से बचे क्‍योंकि इससे आपके लक्षण और गंभीर हो सकते हैं और ये फिर से भी सामने आ सकते हैं।

डॉक्‍टर द्वारा दी गई दवाइयों को ठीक से लें। ऐसा अकसर होता है कि लक्षण हल्‍के होते ही व्‍यक्ति उपचार बंद करने की सोचने लगता है। परन्‍तु यह गलती न करें, ना तो अपनी दवाइयां बंद करें अथवा न ही दवा की डोज स्‍वयं कम करें। एकदम से दवाएं बंद करने से विड्राअल इफेक्‍ट्स होने पर स्थिति अनियंत्रित हो सकती है।

उपचार

इसका उपचार साइकायट्रिस्‍ट ‍द्वारा किया जाता है। इसका उपचार जीवनपर्यन्‍त चलने वाला है इसलिए उपचार में लक्षणों को पहचानने और व्‍यवस्थित करने पर ध्‍यान दिया जाता है। रोगी की जरूरत के हिसाब से निम्‍न तरीके से उपचार किया जाता है:

दवाएं - बाईपोलर डिस्‍आर्डर के उपचार में प्रयोग की जाने वाली दवाइयां हैं:

मूड स्‍टेबलाईजर्स:  इस डिस्‍आर्डर में मेनियेक या हाईपोमेनियक अथवा अवसाद के दौरों को नियंत्रित करने के लिए और रोगी की मनोदशा को संतुलित करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं।

एंटीसाईकोटिक्‍स: अन्‍य दवाईयों से उपचार करने के बादजूद यदि अवसाद या उन्‍माद के लक्षण बने रहें तो इनके साथ एंटीसाईकोटिक्‍स दवाएं दी जाती हैं।   

एंटीडिप्रेसैंन्‍ट: इस रोगजन्‍य अवसाद के लिए आपके डॉक्‍टर इन दवाइयों को भी उपचार में शामिल कर सकते हैं।

एंटीएंग्‍जाईटी दवाएं:  बेचैनी और नींद में सुधार लाने के लिए कम समय के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।

साईकोथेरेपी बायोपोलर के उपचार के लिए साईको थेरेपी अत्‍यावश्‍यक है। चूंकि यह रोग रोगी के व्‍यक्तिगत जीवन के अलावा उसके परिवार को भी प्रभावित करता है। साथ ही इस रोग को काबू में रखने के लिए परिवार का सहयोग भी अनिवार्य होता है इसलिए परिवार को भी इस थेरेपी में शामिल किया जाता है। इसके अलावा इंटरपर्सनल एंड सोशल रिदम थेरेपी के जरिए रोगी के सोने, जागने, भोजन के समय को रूटीन में लाया जाता है। काग्‍नेटिव बिहेवियरल थेरेपी में अस्‍वाथ्‍यकर, नकारात्‍मक सोच और बर्ताव को स्‍वस्‍थ एवं सकारात्‍मक सोच में बदला जाता है। साईकोएजुकेशन के जरिए बायोपोलर डिस्‍आर्डर के बारे में बतलाया और समझाया जाता है ताकि रोगी स्‍वयं ही अपने लक्षणों के बारे में सजग हो सके, इससे रोगी अवसाद और उन्‍माद के दौरों के आरंभिक लक्षणों को पहचानना सीखता है। परिवार के साथ भी रोगी की दशा के बारे में बातचीत की जाती है जिससे वे रोगी को अपना पूरा सहयोग दे सकें।

शराब या ड्रग्‍स की समस्‍या का उपचार: यदि रोगी को शराब अथवा ग्‍स की लत हो तो इसका उपाचार लिया जाना अनिवार्य हो जाता है। अन्‍यथा इसे काबू करना बहुत ही कठिन हो जाता है।

इलैक्‍ट्रोकन्‍वलसिव थेरेपी: दवाईयों के प्रभावी सिद्ध न होने या स्थिति के और अधिक बिगड़ने पर इलैक्‍ट्रोकन्‍वलसिव थेरेपी (ईसीटी) भी दी जाती है।

उपचार जारी रखना: बाईपोलर के लिए जीवन भर दवाइयां लेनी पड़ सकती हैं, दवाइयां लेने के कुछ समय बाद खुद को बेहतर महसूस होने पर भी दवाइयां छोड़ी नहीं जा सकती है क्‍योंकि ऐसा करने पर इसके दोबारा लौट आने पर आशंका बनी रहती है।

हॉस्पिटल में भर्ती करना: रोगी के खतरनाक ढंग से बर्ताव करने या आत्‍महत्‍या के बारे में सोचने या प्रयास करने, भयावह भ्रम होने, अपने आसपास के मौहल को न पहचानने (साईकोटिक) की स्थितियों में डॉक्‍टर हस्‍पताल में भर्ती होने की सलाह देते हैं।  

 

रोग का सामना करने और मदद लेने या करने के लिए टिप्‍स 

 

यदि आपको या आपके किसी परिचित को बाईपोलर डिस्‍आर्डर है तो घबराएं नहीं। विश्‍व भर में लगभग 60 मिलियन यानी 6 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं।

बाईपोलर के बारे में जितना हो सके जानकारी एकत्र करें।

रोगी को डॉक्‍टर के पास जाने और उपचार जारी रखने के लिए प्रोत्‍साहित करें।

अवसाद के दौर से गुजरते समय रोगी अक्‍सर आत्‍महत्‍या जैसे विचारों से जूझता है इसलिए आत्‍महत्‍या के विचार का हल्‍का सा भी चिन्‍ह मिलने पर उसे गंभीरता से लें। यदि व्‍यक्ति को ऐसा कोई विचार आता है तो उसे यह बात अपने करीबी रिश्‍तेदारों या दोस्‍तों को बिना देर किए बतानी चाहिए। यदि आपके किसी प्रिय ने पहले आत्‍महत्‍या का प्रयास किया हो अथवा प्रयास कराने की सोच रहा हो तो यह निश्‍चित किया जाना चाहिए कि उसे अकेले न छोड़ा जाए और सदैव कोई ना कोई उसके साथ रहे। उससे तर्क-वितर्क न करें, ना ही उसे धमकाएं या उस पर चिल्‍लाएं क्‍योंकि ऐसा करने से स्थिति बिगड़ सकती है। रोगी के पास से गन, चाकू, अन्‍य दवाइयां या ऐसी वस्‍तु जिससे रोगी स्‍वयं को या अन्‍य किसी को नुकसान पहुंचा सकता हो, हटा दें।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।